Saturday 10 November 2018

फ़िल्म समीक्षा/ठग्स ऑफ हिंदुस्तान


             ठगों का नाम सुनकर कभी किसी काल में, बरसों पूर्व, पसीने निकल जाते होंगे। लेकिन निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य की "ठग्स ऑफ इंडिया" देखने पर पैसे निकले, पसीने नहीं। पौने तीन घंटे की इस फ़िल्म में अमिताभ हैं, आमिर हैं, कैटरीना है और फातिमा सना शेख है। इसमें आमिर का चुलबुला स्टाइल है और अमिताभ की धीर गंभीर अभिनय शैली है।

              फ़िल्म के शुरू में क्लाइव का नाम सुनते ही लगता है कि यह कहीं  रोबर्ट क्लाइव तो नहीं। लेकिन नहीं। वह क्लाइव तो 1774 को ही दिवंगत हो चुके थे जबकि फ़िल्म में 1795 की कहानी कही गयी है और यहां जॉन क्लाइव है। पूरी फिल्म में अंग्रेजों को ठगों से मात खाते दिखाया गया है। यह दो बड़े नायकों आमिर-अमिताभ की संयुक्त रूप से पहली फ़िल्म है तो ऐसा होना भी चाहिए था। दोनों ठग बने हैं लेकिन एक अंतर है। आमिर के चरित्र में कुछ विविधता है जबकि अमिताभ का वही पुराना एंग्री मैन का रूप भुनाया गया है। आमिर का गधे के ऊपर बैठकर संवाद अदायगी करना मुल्ला नसरुद्दीन नाम के बहुत पुराने चरित्र का स्मरण कराता है। 

               फ़िल्म का नाम ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान है लेकिन अमिताभ किस लिहाज़ से ठग हैं यह शोध का विषय है। अंग्रेजों के पानी के जहाज़ पर रूप बदलकर हमला करना और उन्हें लूटना बड़े ठग का काम है जबकि छोटे ठग यानी आमिर का काम काफिले के भीतर सेंध लगाकर उनका विश्वास जीतना, फिर लुटेरों को उनकी सूचना देकर लुटवाना और फिर अंग्रेजों को लुटेरों की सूचना देकर इनाम हासिल करना है। जिस तरह वे चरित्र बदलते हैं, ठग ऑफ हिन्दोस्तान ही लगते हैं।

                 इतिहास से प्रेरित स्टोरी (इतिहास नहीं) वाली इस फ़िल्म में नाच गाने के लिए रखी गई कैटरीना (सुरैया) का रोल उतना ही है जितना कि अमिताभ की फिल्मों में होता था। उनके डांस स्टेप्स 1795 के हैं, यह भी शोध का विषय है। रोनित रॉय (मिर्ज़ा सिकंदर बेग ) की जीवित बेटी और दंगल फेम फातिमा (ज़फीरा) को अमिताभ (खुदाबक्श आज़ाद) युद्ध से बचा लाते हैं। वह अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में अमिताभ की सहयोगी बनी है और बिना एक्सप्रेशंस वाले सीन्स करती नज़र आती है। वस्तुतः यही किरदार फ़िल्म का बेसिक क़िरदार है। फ़िल्म की कहानी इसी किरदार को लेकर शुरू हुई थी और इसी किरदार पर खत्म होती है। बीच में बहुत कुछ है जो इस फ़िल्म को हिट कराने के लिए ज़रूरी है।

                    आंखों से अभिनय करनेवाले अमिताभ का मध्यांतर से पूर्व हटना, उनके रोल को कम करना अखरता है। इस अवधि में आमिर (फिरंगी मल्लाह) को कहानी बढ़ाने का अवसर मिलता है। लोएड  ओवन के रूप में जॉन क्लाइव जमे हैं। आमिर के दोस्त के रूप में जीशान अय्यूब (शनि) की भूमिका फाड़ू है। ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान दो पीढ़ियों के दिग्गजों के अभिनय कौशल का इम्तिहान है। इस इम्तेहान में डायरेक्टर बाद वाली पीढ़ी के साथ खड़ा दिखाई देता है। आमिर की फिल्मों की धन कमाऊ क्षमता और लोकप्रियता और अमिताभ के पक्ष में सिर्फ लोकप्रियता के चलते यह ज़रूरी लगा होगा। 

                     आजकल फिल्मों के गीतों के अधिकार पहले ही बिक जाते हैं और इससे बजट का अधिकांश हिस्सा कवर करने में मदद मिलती है। साढ़े तीन सौ करोड़ के इस सौदे में से गीत-संगीत बेचने से प्राप्त कमाई को हटाने पर जो कुछ बचता है उसे ये दोनों दिग्गज आसानी से पब्लिक से प्राप्त कर लेंगे, इसमें संदेह नहीं। आखिर दो हज़ार स्क्रीन्स के यूनिवर्सल और 5 हज़ार स्क्रीन्स के देसी राइट्स यों ही बरबाद थोड़े जाएंगे। ऐसे में अमिताभ बच्चन का आमिर खान को 1000 करोड़ कमाने का आशीर्वचन कितना प्रभावी सिद्ध हो पाता है, यह तो वक़्त ही बताएगा। 

                       कैमरे ने कमाल किया है। फाइटिंग के दृश्य फ़िल्म को फाइट में रखते हैं। गीत के बोल मौके के हैं पर तभी तक याद रहते हैं जब तक देख रहे होते हैं। संगीत पर मेहनत के साथ पॉपुलैरिटी पक्ष पर भी ध्यान दिया गया होता तो देखकर बाहर निकलने वाले दर्शक कुछ गुनगुना भी रहे होते। अमिताभ-आमिर के मध्य डायलागबाज़ी व फाइट सीन्स और आमिर के कॉमिक सीन्स पिक्चर की यू एस पी हैं।