महिलायें लोकतांत्रिक राष्ट्र की सबसे सुन्दर वस्तु हैं इसलिये इन पर राष्ट्रीय सहमति बनानी अत्यन्त आवश्यक है। एक बार राष्ट्रीय सहमति का ठप्पा लग गया तो फिर महिलाओं के साथ कहीं भी कुछ भी किया जा सकता है और कोई भी जीवित व्यक्ति/पार्टी विरोध कारगर नहीं होगा।
यूँ महिलाओं के लिये महिलाओं के विरूद्ध अभी भी काफी कुछ पुरूषों द्वारा किया जा रहा है। मसलन, वर्ष में एक दिन महिला-दिवस के रूप में मनाया जाता है उस दिन जहाँ सरकारी और संस्थागत तौर पर कई कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं वहीं ठोक उसी दिन गैर सरकारी और व्यक्तिगत तौर पर महिलाओं का मानमर्दन/क्रियाक्रम सम्पन्न किया जाता है और इस धार्मिक अनुष्ठान में निर्धन और सम्पन्न दोनों प्रकार के पुरूष बराबरी से हिस्सा लेते हैं।
साहित्य जगत में महिलाओं पर काफी कुछ लिखा गया है और वर्तमान में भी कई जागरूक सम्पादक, महिलाओं पर अपनी-अपनी पत्रिकाओं के विशेषांक निकाल रहे है जो पूरी/अपूरी तरह महिलाओं की निजी समस्याओं और कभी-कभी निजी अंगों पर केन्द्रित होते हैं। इन पत्रिकाओं में लेखिकाओं के लेख भी छपते हैं जिनकी कोशिश यह रहती है कि औरतों की ज्यादा से ज्यादा समस्यायें पाठकों के समक्ष रखी जायें किन्तु उनका निदान पाठकों पर और राष्ट्र पर छोड़ दिया जाये।
मैं चूंकि महिलाओं पर राष्ट्रीय सहमति बनाने के इस भव्य आयोजन में संयोजक का गैर ज़िम्मेदाराना कर्तव्य निभा रहा हूँ इसलिये सबसे पहले मेरा यह दायित्व बनता है कि मैं अपने मान्य विचार आप लोगों के समक्ष रखूँ।
‘साथियों, चूँकि इस लेख को पढ़ने और पढ़कर समझने वाले ज़्यादातर मित्र पुरूष ही हैं और प्रत्येक के घर में एक ना एक अबला स्त्री होती है अतः क्यों न इस राष्ट्रीय सहमति की शुरूआत घर से ही की जाये। घर में पायी जाने वाली महिला चाहे वह बीवी हो, माँ हो या बहिन, उसे इस बात की कड़ी हिदायत दे देनी चाहिये कि वह वस्त्रों में क्या पहिने और क्या न पहिने। तकनीकी शब्दावली में उस पर ‘ड्रेस कोड’ तत्काल प्रभाव से लागू कर देना चाहिये। पति लोग अपनी पत्नी को साड़ी न बांधने के निर्देश दे सकते है क्योंकि साड़ी एक यौ नोत्तेजक पोशाक है जिसे बांधकर शरीर के मध्य भाग की नुमाइश होती है। अतः सलवाज कमीज पहनें। कमीज का डिजाइन और उसकी कटिंग पति द्वारा अभिप्रमाणित हो। कड़ाई पेट से ऊपर न हो और गला, ज्यादा नीचा न हो। आस्तीन कुहनी से ऊपर बिल्कुल न जाने पाये क्योंकि इससे मित्रों से खतरा रहता है और पत्नी निज़ी नहीं रहने पाती।
युवा अपनी बहिनों को और वृद्ध अपनी बेटियों को जींस न पहिनने दें। जींस एक पाश्चात्य पोशाक है और यह दूसरे को बहिन-बेटियों पर ही फबती है अपनी पर नहीं।
तेजी से बढ़ता बच्चा लोग यह खेल अपनी-अपनी माँओं पर खेल सकते हैं। वे क्या पहिन-ओढ़ रही हैं इस पर गहरी नज़र रखें। बाप से चुगली करें और माँ को मनपसंद कपड़े पहिनने से रोकें। किन्तु तारिकाओं के ग्लैमरस् पोस्टर्स इकट्ठें करें और फिल्में खूब देखें।
किसी भी मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति के लिये आमजनों का सहयोग परम् आवश्यक है और अभी तक आमजनों में महिलायें भी आती रही हैं। अतः महिलाओं के सहयोग के बिना महिलाओं पर राष्ट्रीय सहमति बनानी मुश्किल प्रतीत होती है। देश की कामकाजी महिलायें इस दिशा में अपने-अपने पतियों को अपनी-अपनी पसंद के ठोस सुझाव और दिशा-निर्देश दे सकती हैं। उन्हें चाहिये कि वे अपने पतियों के घर के बाहर उठने-बैठने-सोने में एतराज़ बिल्कुल न करें। घरेलू महिलाओं का दृष्टिकोण इस मामले में संकुचित हो सकता है किन्तु कामकाजी महिलाओं का सहृदयता दिखलानी चाहिये। पति को घर पर आने वाली कामवाली पसंद हो तो घर का मामला घर में ही निबटा लेना चाहिये।
राष्ट्रीय सहमति पर मैं जो यह अपनी बात कह रहा हूँ उसे कोरा भाषण मात्र ही न समझा जाये। महिलाओं पर राष्ट्रीय सहमति के व्यापक अर्थ हैं जिनमें प्रमुख हैं, महिलाओं की इज्ज़त उछालने पर राष्ट्रीय सहमति, महिलाओं की आबरू पर राष्ट्रीय सहमति, महिलाओं के चीरहरण पर राष्ट्रीय सहमति आदि-आदि। प्रबुद्ध और योग्य व्यक्ति इनमें अश्लील निहितार्थ भी निकाल सकते हैं। उनका स्वागत है। किन्तु एक बात तो तय है। एक बार समूचा राष्ट्र महिलाओं पर सहमत हो जाये तो फिर उनकी इज्ज़त भरे बाजार में उछालने अथवा पति परमेश्वर द्वारा सरेआम चप्पलों से इनके साथ प्रेम प्रदर्शन करने से कोई नहीं रोक सकता। खुद कोई महिला भी नहीं।’