Sunday, 22 January 2017

तक़दीर का फंसाना

          छोटे शहर में ऑटो कम, रिक्शाएं ज्यादा होती हैं। रिक्शा चलाने वाले को रिक्शावाला कहा जाता है। रिक्शावाला बचपन से रिक्शावाला नहीं होता। बचपन में वो रिक्शावाले का लड़का होता है। वो अपने बाप से छुपकर रिक्शा पर अपना हाथ साफ़ करता है। तब, जब उसका बाप दोपहर में घर आया हुआ होता है और आराम कर रहा होता है। माँ चिल्लाती है कि पढ़ लिख ले वरना बाप की तरह रिक्शा ही चलाता रह जायेगा। बाप भी उसे पीटता है रिक्शा दीवार में ठुक जाने पर। बाद में जब उसका बाप दारु पीकर कई - कई दिन काम पर नहीं जाता तो उसकी माँ ही उसे कहती है कि जा, रिक्शा ले जा और कुछ कमा कर ला। ये भड़ुआ तो घर पर ही पड़ा रहेगा। कालांतर में यही लड़का अमिताभ बच्चन की तरह मर्द बनता है और रिक्शावाला कहलाता है।

            वो छोटा सा मर्द अपने छोटे से शहर में अपना बड़ा सा रिक्शा संभाल लेता है। रिक्शा सँभालने के बाद ही उसे पता चलता है कि जिस रिक्शा को वो अपनी समझ रहा था वो तो किराये की है। जल्दी ही उसे ये भी ज्ञात हो जाता है कि रिक्शा का किराया भी कई महीनो से उसके मालिक को नहीं दिया गया। वो हड़बड़ा जाता है। बाप से वो कुछ कह नहीं पाता क्योंकि बाप जो होता है वो बाप होता है। वो दारु पीकर पड़ा हो तो भी बाप ही होता है।

              रिक्शा की पैडल मारते - मारते ही वो यह भी जान जाता है कि उसका बाप भरी जवानी में क्यों खांसने लगा था और वक़्त से पहले बूढा क्यों हो गया था । अब उसे यह जानने में दिलचस्पी थी कि उसका बाप घर पर कम पैसे क्यों लाता था। दो - चार पुलिसवालों के अपनत्व से उसे जल्दी ही इस बात की तसल्ली मिल जाती है कि उसकी रिक्शा पर सवारियों का टोटा नहीं रहने वाला। बस, अब उसे किराया चुकाने वाली सवारियों की तलाश थी। 

             तीन साल हो गए थे उसे रिक्शा चलाते। अभी उसकी शादी नहीं हो सकी थी। उसे हैरानी थी कि उसके बाप की उसकी उम्र में शादी कैसे हो गयी थी। जिस हिसाब से वो कमा रहा थाउसे नहीं लगता था कि आगामी तीस सालों में भी उसकी शादी होने की संभावना बनती थी। कमा क्या रहा था, गँवा ज्यादा रहा था।  पैसा, सेहत और उम्र। पैसा उसपर भारी था और सेहत पैसों पर। दोनों मिलकर उसकी उम्र पर भारी पड़ रहे थे। 

               गलती से एक बार उसकी शादी हो गयी। कोई नहीं रोक सका उसकी शादी को। भगवान की यही मर्ज़ी थी। रिश्ता भी तो भगवानदास ने ही कराया था। लड़की की माँ उसे कहीं मिल गयी थी। वो अपनी लड़की के लिए परेशान थी। इधर इसकी माँ भी परेशान थी। दोनों ने सोचा कि जब परेशान ही होना है तो साथ मिलकर परेशान क्यों न हों। फिर दोनों मिलकर भगवान को परेशान करेंगे। भगवानदास से उनकी दुश्मनी जानी जाती थी। 

              वो बहुत खुश था। वहीजो पहले रिक्शावाले का लड़का कहलाता था और बाद में खुद रिक्शावाला कहलाने लगा था। उसकी शादी एक मंदिर में हुई जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो शामिल हुए थे। लड़की की माँ और उसका रिक्शावाला बाप भी था। ख़ुशी की बात यह कि वो लड़की भी थी जिससे उसकी शादी तय हुई थी। लड़की के बाप ने उसे एक कोने में ले जाकर उसके हाथ में लिवर दुरुस्त रखने की एक शीशी थमाई और दूसरे हाथ से उसकी जेब में बियर की एक छोटी सी बोतल चुपके से ये कहते हुए डाल दी कि रिक्शा खींचने से लिवर और किडनी पर असर पड़ता है और ये दोनों दवाइयां नियमित रूप से लेने से उनपर असर काम पड़ेगा। 

                रिक्शावाले लड़के को रात बिताने के लिए वही खोली नसीब हुई जो उसके बाप रिक्शावाले को और उसके भी पहले उसके पिता को बरसों पहले नसीब हुई थी और जहाँ वो माँ के साथ रहता आया था। माँ ने खुश होकर अपनी चारपाई भी नए जोड़े के हवाले कर दी थी और खुद वो बाहर अपने शराबी पति के साथ रात काटने के लिए इस शर्त पर चली गयी थी कि वो उस रात शराब नहीं पियेगा। ख़सम ने भी शर्त की लाज़ रखी और उस रात शराब न पीकर वो बियर पी जो उसे उसके पुत्र की जेब से थोड़ी देर पहले हासिल हुई थी। 

                  उस रात अपने रिक्शावाले भइया ने अपनी नयी नवेली का घूंघट उठाया तो नवेली ने मुँह दिखाई में माँगा कि अगर लड़का हुआ तो एक अच्छी सी रिक्शा दिलाएगा और लड़की हुई तो एक अच्छे से रिक्शावाले के साथ उसका ब्याह रचाएगा। 

                    और अपने भइया ने मुस्कुराकर हाँ कर दी।