Wednesday 21 March 2012

उनकी योजना


पूर्ण गंभीरता और ईमानदारी के साथ उन्होंने मुझे सूचना दी कि वे अब और सहन नहीं कर सकते तथा शीघ्र ही रिश्वत लेना प्रारम्भ कर रहे हैं।
जिस समय और जिस क्षण वे रिश्वत काया में प्रवेश करने की सूचना मुझे प्रदान कर रहे थे, आप सोच भी नहीं सकते कि कितने दुखी थे। सम्भवतः यह दुख उन्हें विलम्ब से इस 'प्लान' को लेने पर था। उनसे पूर्व उनके समस्त सगे-सम्बन्धियों तथा मित्र इस प्लान को ले चुके थे तथा अच्छी-खासी प्रीमियम प्राप्त कर रहे थे।
वे एक बडे़ सरकारी विभाग में अधिकारी थे और जिस लक्ष्य की घोषणा वे अब कर रहे थे, नियमानुसार उन्हें तभी कर देनी थी, जब उन्होंने इस पद पर अपनी योगदान आखया प्रस्तुत की थी। उनके जैसे सम्मानित अधिकारी से ऐसी अपेक्षा की जाती थी। उनके नियन्त्रण में आने वाले समस्त कर्मचारी जब पूर्ण निष्ठा के साथ रिश्वत लेने के अपने दायित्व को बरसों से निभा रहे थे तो उनपर ही ऐसी कौन सी विपदा टपकी थी जो वे अब तक लोकतंत्र की इस कामयाब योजना से विमुख चल रहे थे।

मैंने उनके चेहरे की आरे ध्यान से देखा। जब वे कह रहे थे तो कह रहे थे। उनके कहे का अर्थ स्पष्ट था। कल से वे रिश्वत लेना आरम्भ करने वाले थे। अब कोई अन्ना या लोकपाल उनके रास्ते में नहीं आने वाला था। आता भी तो वे उसे लांघने का हौसला अब रखते थे। कम से कम उनकी मुखमुद्रा से तो यही प्रतीत होता था।
उन्होंने अब तक इस रिच्च्वती हवन में सामग्री क्यों नहीं डाली थी, इस बारे में इतिहास मौन था। वे स्वयं मौन थे। हमें भी मौन रहना था। इसे प्रारम्भ करने के पीछे उनकी क्या विवशता थी, यह कोई रिश्वतखोर ही बतला सकता था।
मैंने घड़ी देखी। शाम के पांच बजने को थे। पता नहीं, वे आज ही इस पावन कार्य को प्रारम्भ करेंगे अथवा इस मैटर को कल के मुखय एजेण्डे में रखेंगे। मैं सोच रहा था। ऑफिस बंद होने के बाद वे किसी अन्य स्थान पर सोमरस का पान करने जाते थे। हो सकता है कि अपनी अन्य घोद्गाणाओं की भांति वे इसकी भी उद्‌घोद्गाणा  वहीं से करें। और इस योजना का भी अन्ततः वही हश्र हो, जो उनकी अन्य योजनाओं को हुआ।
बहरहाल, वे रिश्वत लेना प्रारम्भ करने वाले हैं, इस पर हुर्रा..ऽ..ऽ कहूं या ऊह..ला...ला.., कुछ समझ नहीं आ रहा है । हां, यह जरूर बताना चाहूंगा कि जैसे ही मेरी निगाह उनके ललाट पर गयी, उस पर अंग्रेजी का v बना हुआ था।