Friday 1 November 2013

एक गरीब की दीपावली

                           
यह एक गरीब था और दीपावली मनाना चाहता था। किन्तु उसे दुःख था कि वह गरीब है और दीपावली धूमधाम से नहीं मना सकता। वह अपनी गरीबी पर इस हद तक शर्मिन्दा था कि एक बार तो उसने यह तय कर लिया कि वह दीपावली नहीं मनायेगा। किन्तु दूसरे क्षण उसने सोचा कि यदि वह दीपावली नहीं मनायेगा तो आसपास वाले क्या सोचेंगे।वे कहेंगे कि जब वह अपनी कन्या का प्रवेश एक महंगे और शहर के प्रतिष्ठित विद्यालय में करा सकता है तो दीपावली धूमधाम से क्यों नहीं मना सकता। वह इसका उत्तर सोचने लगा। थोड़ी देर में उसने जबाव तैयार कर लिया। जवाब यह था कि महंगे और प्रतिष्ठित स्कूल में दाखिला दिलाने के बाद उसके पास इतने पैसे नहीं बचे थे कि वह दीपावली धूमधाम से मना सके। पर जब जवाब उसे जंचा नहीं तब वह और  चीजों के भाव मालूम करने बाजार चला गया।
उसने खील, बताशों, खिलौनों से लेकर मिठाईयों-फ्रूटों और ड्राईफ्रूटों के बाज़ार भाव मालूम किये। हर चीज़ पिछले वर्ष के मुकाबले महंगी हो गयी थी। दाम लगभग ड्योढ़े हो गये थे। केवल काजू के भाव में ही वृद्धि इतनी अधिक नहीं हुयी थी जितना उसका अनुमान था। अतः उसने अनमने भाव से काजू के पैकेट्स खरीदे और घर ले आया। घर आकर उसने पिछले वर्ष का सूची-पत्र निकाला। कुछ पुराने नामों को काटा और नये नामों को जोड़ा। व्यक्तित्व के भार के अनुसार में उसने डिब्बों के भारों को रखा और चिटें चिपका दीं। इसके बाद वह निश्चित हो गया और पड़कर सो गया।
किन्तु चिन्ता ने उसे जगा दिया। काजुओं में उसका खर्चा बहुत हो गया था और वह गरीब था। उसने सोचा, अभी भी कुछ नाम ऐसे रह गये थे जिन्हें दीपावली के शुभअवसर पर काजू भेजे जा सकते थे। किन्तु वह गरीब था इसलिये काजू के और डिब्बे अफोर्ड नहीं कर सकता था। वह रात भर सोचता रहा कि कल बच्चे पटाखे, फुलझडि़याँ और राकेट माँगेगे तो वह क्या जवाब देगा। इसी चिन्ता में सुबह हो गयी।
सुबह बच्चों ने उसके हाथ में लिस्ट दे दी। लिस्ट में नाना प्रकार के पटाखों के नाम थे जिनका नाम वह अब से पूर्व बिल्कुल नहीं जानता था। कुछ पटाखों के नाम तो अन्तरिक्ष में छोड़े गये उपग्रहों और ईराक-ईरान युद्ध में प्रयोग किये गये प्रक्षेपास्त्रों से इतने अधिक मिलते थे कि एक बार तो उसे भय लगा कि अमेरिका को पता चल गया तो कहीं वह नाराज़ न हो जाये। वह कमाता तो बहुत था पर डरता भी उसी अनुपात में था। ज्यादा कमाने वाले ज्यादा डरते क्यों है? उसने सोचा पर दूसरे ही क्षण वह इस प्रश्न पर विचार करने लगा कि ज्यादा कमाने के बावजूद वह गरीब क्यों है।बहरहाल लिस्ट लेकर वह बाजार गया और ख्ूाब सारी मिसाइलें व एटम बम खरीदे। एक अनुमान के अनुसार उसने अपनी आय का साढ़े बारह प्रतिशत इन आयुधों पर व्यय कर दिया था और वह कई मुल्कों के रक्षा बजट के प्रतिशत से कहीं अधिक था। जब वह अपनी नई कार पर इन एटम बमों और मिसाइलों को लादकर ला रहा था तो कार की पिछली सींट व डिक्की पूरी तरह भरी हुयी थी और कार उसे किसी टैंक से कम प्रतीत नहीं हो रही थी। कार को ड्राईव करते वक्त उसे ऐसा लगा कि वह थलसेना का कोई बड़ा अधिकारी है और दुश्मनों के छक्के छुड़ाने जा रहा है।
लेकिन थोड़ी ही देर में उसे याद आया कि गरीब होने के बावजूद इस मद में वह काफी खर्चा कर चुका है और वह सोचकर वह फिर परेशान हो गया।
घर लौटा तो उसकी पत्नी ने याद दिलाया कि अभी बंगले की सजावट नहीं हुयी है और जब तक बंगले को सजाया नहीं जायेगा, दीपावली मनाने में खासी दिक्कतें आयेगी। उसने भी सोचा कि गरीब से गरीब अपनी दीपावली अच्छी मनाना चाहता है। वह भी चूँकि गरीब है इसलिये दीपावली जरूर अच्छी मनायेगा। उसने सजावट वाले को टेलीफोन किया और उससे कहा कि वह उसके बंगले की सजावट इस तरह करे कि वह किसी राजा के महल की तरह लगे। उसने यह भी निर्देश दिया कि ऐसी सजावट किसी और बंगले की नहीं होनी चाहिये, इसके बाद उसने रिसीवर रख दिया।
हालांकि वह बंगले को ताजमहल बनाना चाहता था पर इसमें पैसे बहुत लगते। इतने पैसे उसके पास नहीं थे। वह गरीब जो था। इसलिये उसे मन मसोस कर रह जाना पड़ा।
दीपावली के बाद उसने हिसाब लगाया तो उसे हैरान हो जाना पड़ा कि उसके कई हजार रूपये दीपावली की भेंट गये थे। उसे बहुत दुख हुआ।
वह दुखी इसलिये हुआ क्योंकि वह गरीब था और दीपावली धूमधाम से नहीं मना सका था।



 

Thursday 15 August 2013

डेमोक्रेसी का डेकोरम

कल स्वतन्त्रता दिवस है। यह बहस का विषय हो नहीं सकता। इस मामले में बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं है। और फिर बहस तो छोटे बच्चों का विषय है। 
जब तिरंगे, बिकने के लिए दुकानों में आ गये हों और बच्चों को यह कह दिया गया हो कि सभी बच्चे अलसुबह खाली पेट, झंडा लेकर कल स्कूल में उपस्थित हों तो अब तो शंका की गंुजायश ही नहीं बचती कि कल स्वतंत्रता दिवस है। 
हम जिसका इंतजार नहीं कर रहे थे वह दिन कल फिर आ जायेगा। बच्चों को स्कूल जाना पड़ेगा। सच मानिये, जब से मिड डे मील, लास्ट डे मील सिद्ध हुआ है तभी से बच्चों का पेट स्कूल जाने के नाम पर दर्द करने लगा है। स्वतंत्रता दिवस की सार्थकता क्या है, यह बच्चे क्या जाने। उन्हें लगता है कि आज फिर मिड डे मील भकोसना पड़ेगा। वे इसे अपने मील से लिंक्ड कर रहे हैं। वे बच्चे हैं। नहीं जानते कि किसको किससे लिंक्ड करना चाहिये। लिंक्ड करने की भी एक कला होती है। यह कला कल-आजकल में नहीं सीखी जा सकती। बताइये, पेट को स्कूल से लिंक्ड कर रहे हैं। उन्हें पेट को पेस्टीसाइड से लिंक्ड करना चाहिए। नहीं?
बच्चों का अपना सौन्दर्यशास्त्र है जिसमें अर्थशास्त्र नहीं आता। उनके सौन्दर्यशास्त्र में राजनीति भी नहीं आती। वे तो बस मील के लिए स्कूल जाते हैं। गरीब बच्चा जब-जब स्कूल जाता है तो ‘मील’ के लिए ही स्कूल जाता है और अध्यापकों से भी मिल आता है। ईश्वर जानता है कि गरीब बच्चा जब-जब स्कूल जाता है तो पाालटिक्स के पेट में दर्द उत्पन्न हो जाता है। जहां सारी कायनात उसे स्कूल भेजने में जोर लगाती है वहीं वह यह बेचारा छोटा सा, प्यारा सा, नन्हा सा होमो सेपियन्स अपना सारा जोर भूख मिटाने में लगाता है। बिना यह सोचे-समझे कि जो कुछ वह अपने डाइजेस्टिव सिस्टम की डिमांड पर खा रहा है वह सब कुछ उस सिस्टम की देन है जिसपर किसी का जोर नहीं। खुद सिस्टम बनाने वाले का भी नहीं। सिस्टम की नर्वसनेस देखिए, उसका नर्वस सिस्टम क्या देखते हैं।
पेट खाली हो और हाथ में तिरंगा हो तब भी देश के लिए भूखे-प्यासे रहकर मर मिटने का जज्बा पैदा हो सकता है। तब भी मुख से भारत माता की जय का नारा निकल सकता है। लेकिन ऐसी बहादुर मौत कौन चाहेगा जो स्कूल के बरामदे में जहरीला खाना खाने से मिलती हो। विचार है कि जब पेट खाली हो तो ज्ञान से पेट नहीं भरता। उत्तम विचार यह है कि पहले पेट का ही राम नाम सत्य करें ताकि न हो बांस और न बजे ससुरी बांसुरी।
बताइये, जिसे मील का पत्थर बनना था, उसे मिड डे मील खाकर मरना पड़ा। हास्य नहीं, हास्यास्पदता देखिए।
इस स्वतं़त्रता दिवस पर सरकारी स्कूल जाने वाले कम से कम कितने कर्णधारों को इस बात की गारन्टी दी जा सकती है कि उन्हें भविष्य में कीड़ों की तरह पेस्टीसाइड पीकर नहीं मरना पडे़गा और डेमाक्रेसी का डेकोरम बाकायदा मेन्टेन किया जायेगा। 
मी लार्ड! बच्चों को मरने से पूर्व कम से कम उतनी उम्र तो बख्श दी जाए, जितनी आजाद भारत की है। 
दैट्स आॅल मी लाॅर्ड।