Sunday, 2 October 2011

बस, तू कब आयेगी!



बस की प्रतीक्षा में खड़ा यात्री स्वयं से पूछता है- बस, तू कब आएगी?
दुनिया में बस ही एक ऐसी चीज है जिसके बारे में प्रतीक्षारत् यात्री कभी नहीं कहता, कि अब ‘बस’ भी कर। मत आ। वह प्रतीक्षा करता रहता है, अनवरत्। एक बस आती है, और चली जाती है। नहीं रूकती। दूसरी आती है और चली जाती है। भरी हुई है, कैसे रूके। यात्री झींकता है। पर प्रतीक्षा करना उसकी मजबूरी है। उसकी किस्मत में प्रतीक्षा करना लिखा है। वह चलता-फिरता प्रतीक्षालय है जिसमें बैठा वह अकेला प्रतीक्षा करता रहता है बस की। उसे लगता है कि वह सारी उम्र प्रतीक्षा करता रहेगा उस बस की, जो आती है और चली जाती है। कभी रूकती है तो भरी हुई होती है और जब नहीं रूकती तो उसे मानना पड़ता है कि भरी हुई होगी। वह अगली बस की प्रतीक्षा करने लगता है, जिसके बारे में उसका यह मानना होता है कि वह भरी हुई नहीं होगी, खाली होगी। लेकिन वह बस कभी नहीं आती जो खाली हो। आती है तो खाली नहीं होती। खाली होती है तो रूकती नहीं। रूकती है तो कोई सीट खाली नहीं होती।
वह प्रतीक्षारत् है, किसी खाली बस के लिए। 
वह कल्पना करता है कि बस उसके पास आकर रूकेगी। कण्डक्टर मुस्कुराकर उससे पूछेगा, कहां जाना है? 
यात्री कहेगा, मोतीचूर। 
कण्डक्टर जवाब देगा, आइये बैठिये। यह बस तो सीधे मोतीचूर तक ही जा रही है। 
फिर वह बस में चढे़गा किसी शाही अंदाज में। बस, बिलकुल खाली होगी, जैसे उसी के लिए बनी हो। वह सबसे आगे वाली सीट पर जाकर बैठ जायेगा। फिर तुरन्त उठेगा और पीछे वाली सीट पर बैठ जायेगा। उसे वहां भी चैन नहीं आयेगा तो वह कण्डक्टर के साथ बैठ जायेगा। वह चालक की सीट पर भी बैठना चाहेगा। अंततः, वह खड़ा होकर यात्रा करेगा, जैसे कि वह प्रतिदिन करता है।
परन्तु ऐसा नहीं होता। बस नहीं आती बहुत देर तक। आती है, तो रूकती नहीं। रूकती है तो तो खाली नहीं होती। खाली होती है तो मोतीचूर नहीं जा रही होती। अर्थात कुछ न कुछ ऐसा होता है कि वह प्रतीक्षा करता रह जाता है, अगली बस की। अगली बस, जो नामालूम कब आयेगी। आयेगी तो रूकेगी नहीं। रूकेगी तो चांदपुर की होगी, वहां की तो बिलकुल ही नहीं होगी, जहां पर वह जा रहा होगा।
एक बस जीवन भर यात्री को प्रतीक्षा कराती है और दिन में सैकड़ों यात्री जीवन भर बस की प्रतीक्षा करते हैं और एक दूसरे से पूछते हैं - बस, तू कब आयेगी? ऐरी बस, तू कब आयेगी? बस री, तू कब आवेगी? यही जीवन की बस है।


1 comment:

  1. व्यंग्य लेखन में तुम्हारा जवाब नहीं है। मुझे लगता है कि लगातार न लिखकर तुम अपना और साहित्य का दोनों का ही बहुत अहित कर चुके हो। इस अहित को अब और न होने दो। जुट जाओ। अन्यथा बस आगे निकल चुकी होगी और आप पीछे झाँकते हुए यही कहते रह जाएँगे कि…बस, तू कब आयेगी?

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