पत्नी जी ने रात को सपना देखा. और सपने में
अरविन्द केजरीवाल साहब को देखा. सुबह उठते ही बोली कि आओ, पहले सपना सुनो, चाय बाद
में बनाना. ऐसा सुअवसर खाकसार को कभी-कभी ही मिलता है जब पत्नी कहती है कि चाय अभी
नहीं बनाओ और पास आकर बैठ जाओ. अतः मैं चुपचाप आकर उनके निकट बैठ गया.
अरविन्द केजरीवाल साहब अत्यंत चौकस
व्यक्तितत्व के धनी हैं और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो उनका चौकन्नापन देखते ही
बनता है. केजरीवाल साहब को पहले केजरीवाल कहता था लेकिन पत्नी के आग्रह पर
केजरीवाल जी कहना प्रारंभ कर दिया. कुछ समय तक केजरीवाल जी ही चला लेकिन जल्दी ही
पत्नी का पैगाम एक दिन घर से दफ्तर में फोन के माध्यम से आया कि अब आप केजरीवाल
साहब कहना प्रारंभ कर दीजिए. पत्नी जी को जब कोई काम निकलवाना होता है तो
लीजिए/दीजिए कहना आरम्भ कर देती है जो कि अत्यंत कर्णप्रिय होता है अतः में भी
उनकी सलाहों पर तत्काल अमल कर देना अपना पहला फ़र्ज़ समझता हूँ.
तो वर्तमान स्थिति यह थी कि पत्नी जी जो थीं वो
सोफे पर सामने बैठी थी और खाकसार उनके समक्ष इस तरह बैठा था मानो भ्रष्टाचार के
केजरीवाल-आरोप हम पर सिद्ध हो गए हों. इधर दफ्तर का समय हो चला था, अभी शेव भी
बनानी थी और पत्नी जी केजरीवाल रुपी उस्तरा छोड़ने को तैयार नहीं थीं. ‘क्या हुआ,
जल्दी कहो’ कहने की हिम्मत ना तो पहले थी और ना अब है. और अब तो मामला ही केजरीवाल
साहब का था जिसे सुलझाने में नामालूम कितना वक़्त लगना था. पत्नी जी के मुंह से बोल
फूटे तो सुनकर हम फूटें. देर से दफ्तर पंहुचेंगे तो क्या कारण बताएंगे- घर पर
केजरीवाल साहब आये थे या सपने में आये थे, इसलिए लेट हो गया. आज की कैजुअल लीव
लेने पर भी विचार् किया तो हाथों-हाथ इस समस्या ने भी दस्तक दे दी कि ‘रीज़न’ में
क्या लिखूंगा- पत्नी जी की तबियत खराब या फिर पत्नी जी के सपने के कारण मेरी तबियत
खराब.
आखिरकार आकाशवाणी हुयी. पत्नी जी के मुखारविंद से
बोल फूटे- ‘रात सपने में देखा कि केजरीवाल साहब ने आपको ‘टारगेट’
करने का मन बना लिया है.’ सुनकर मैं नीचे गिरा जैसे कभी सत्यम के शेयर्स गिरे थे. मैंने
ऐसा क्या कर दिया जो केजरीवाल साहब ने मेरी सार्वजानिक छवि को उपकृत करने का मन
बना लिया. क्या शेष सभी के भ्रष्टाचार की पोल खोली जा चुकी है जो मेरा नंबर आ गया.
मैं तो एक छोटे से शहर में रहता हूँ जिसे साल में सिर्फ ६ सिलेंडर सबसिडी के साथ
मिलते हैं, मेरी गैस क्यों निकालते हो भाई?, क्या दिल्ली-मुंबई वालों का अभिनन्दन करने
का सद्कार्य पूर्ण हो गया जो मुझ जैसे गंवार को सम्मानित करने का मन बना लिया. हैरानी
की बात यह थी कि केजरीवाल साहब उस कमजोर व्यक्ति को ललकारने का मन बना रहे थे जो
कि खुद पत्नी के ललकारने हेतु अभिशप्त और भयभीत है. क्या उन्हें लगता है कि महीने
में दो-चार पैसे खा लेना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है. टी.ए. बिलों में चार
सौ-पांच सौ का हेर-फेर करना भ्रष्टाचार कब से हो गया, अंकल? मैं तो रहता भी ऐसे
मोहल्ले में हूँ जिसमे भ्रष्टाचार भी सब्जी की रेहडी के स्तर का होता है. महिला ने
दो किलो आलू लिए और दो मिर्ची अपनी ओर खिसका लीं, वाले स्तर का. उस स्तर का नहीं
कि पांच सौ ग्राम बैंगन तुलवाये और सात सौ ग्राम का कद्दू पार कर लिया.
पत्नी जी कहती हैं कि आज की तारीख में भ्रष्टाचार
कौन नहीं करता, वही नहीं करता जिसे मौका नहीं मिलता. पत्नी जी भ्रष्टाचार की
समर्थक नहीं है लेकिन घर पर चाय मुझे बनानी पड़ती है. यह भ्रष्टाचार है लेकिन पत्नी
जी नहीं मानती. दफ्तर में जो चाय आती है उसका भुगतान हम कर्मचारी रो-रोकर कर भी
नहीं करते हैं. पत्नी कहती है कि यह भ्रष्टाचार है, लेकिन मेरा मन नहीं मानता.
हमारे बीच यही चिखचिख चलती रहती है.
जिस दिन की यह घटना है उस दिन मैं दफ्तर नहीं
गया. कैसे जाता? जिसको केजरीवाल साहब टारगेट बना लेते हैं वह कहीं जाकर आराम से सो
सकता है भला? जिन लोगों ने वास्तव में पैसा खाकर डकार भी नहीं मारी है उनका क्या
हश्र होता होगा!
आपके दिए लिंक से आपके इस ब्लॉग तक पहुँची।
ReplyDeleteबधाई। शुभकामनाएँ।
हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteBhut acha likha h aapne very nice
ReplyDeleteAapne bhut acha likha h very nice
ReplyDeleteVery nice
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